आधुनिक हिन्दी साहित्य के युगप्रवर्तक लेखक जयशंकर प्रसाद को कविता करने की प्रेरणा अपने घर-मोहल्ले के विद्वानों की संगत से मिली। हिंदी साहित्य में प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास यानी रचना की सभी विधाओं में वह सिद्धहस्त थे। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं।
जयशंकर प्रसाद फोटो साभार (navbharattimes.indiatimes.com)
'चित्राधार' उनका पहला संग्रह है। उसका प्रथम संस्करण सन् 1918 में प्रकाशित हुआ। इसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली में कविता, कहानी, नाटक, निबन्धों का संकलन किया गया। वर्ष 1928 में इसका दूसरा संस्करण आया।
हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक कवि-नाटककार-कहानीकार-उपन्यासकार तथा निबन्धकार जयशंकर प्रसाद है। 'लहर' मुक्तकों का संग्रह है। 'झरना' उनकी छायावादी कविताओं की कृति है। 'कानन कुसुम' में उन्होंने अनुभूति और अभिव्यक्ति की नयी दिशाएँ खोजने के प्रयत्न किए हैं। सन् 1909 में 'प्रेम पथिक' का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले 'इन्दू' में प्रकाशित हुआ।
आरम्भिक जीवन
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1890 को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। बनारस के सुंघनी साहु घराने पर वह ऐसे वातावरण में पले, बढ़े, जब पूरा परिवार अपनी व्यावसायिक हैसियत गंवाकर कर्ज के पहाड़ के नीचे दब चुका था। उस समय प्रसाद जी बारह वर्ष के थे, जब उनके पिता सुंघनी का देहान्त हो गया। इसके बाद घर में भयानक गृहक्लेश होने लगा। पिता की मृत्यु के दो-तीन वर्ष के भीतर ही उनकी माता का भी देहान्त हो गया। सबसे दुर्भाग्य का दिन वह रहा, जब उनके बड़े भाई शम्भूरतन भी चल बसे। सत्रह वर्ष का होते-होते पूरे परिवार का बोझ प्रसाद के कंधों पर आ गया लेकिन उन्होंने हालात से हार नहीं मानी। न घर-गृहस्थी संभालने में पीछे हटे, न साहित्य-साधना में।
साहित्यिक सफलता
जयशंकर प्रसाद को कविता करने की प्रेरणा अपने घर-मोहल्ले के विद्वानों की संगत से मिली। हिंदी साहित्य में प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास यानी रचना की सभी विधाओं में वह सिद्धहस्त थे। उनकी साहित्यिक सफलता का निष्कर्ष इतना भर है कि वह 'छायावाद' के चार उन्नायकों में एक रहे।
भाषा शैली और शब्द-विन्यास के सृजन में उन्हें ही सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ा। उनकी कहानियों का अपना पृथक शिल्प रहा है। पात्रों के चरित्र-चित्रण का, भाषा-सौष्ठव का, वाक्य-गठन की सर्वथा निजी पहचान है। उनके नाटकों में भी इसी प्रकार के अभिनव और श्लाघ्य प्रयोग मिलते हैं। अभिनेयता को दृष्टि में रखकर उनकी आलोचनाएं भी हुईं। उनका कहना था कि रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिए, न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।
प्रमुख कृतियाँ
'चित्राधार' उनका पहला संग्रह है। उसका प्रथम संस्करण सन् 1918 में प्रकाशित हुआ। इसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली में कविता, कहानी, नाटक, निबन्धों का संकलन किया गया। वर्ष 1928 में इसका दूसरा संस्करण आया। 'चित्राधार' की कविताओं को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया जाता है। एक खण्ड उन आख्यानक कविताओं अथवा कथा काव्यों का है, जिनमें प्रबन्धात्मकता है। अयोध्या का उद्धार, वनमिलन, और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संग्रहीत हैं। 'अयोध्या का उद्धार' में लव द्वारा अयोध्या को पुन: बसाने की कथा है। इसकी प्रेरणा कालिदास का 'रघुवंश' है। 'वनमिलन' में 'अभिज्ञानशाकुन्तलम' की प्रेरणा है। 'प्रेमराज्य' की कथा ऐतिहासिक है।
'कानन कुसुम' प्रसाद की खड़ीबोली की कविताओं का पहला संग्रह रहा। 'कामायनी' महाकाव्य को उनका अक्षय कीर्ति स्तम्भ कहा जाता है। भाषा, शैली और विषय तीनों ही की दृष्टि से यह विश्व-साहित्य का अद्वितीय ग्रन्थ है। 'कामायनी' में प्रसादजी ने प्रतीकात्मक पात्रों के द्वारा मानव के मनोवैज्ञानिक विकास को प्रस्तुत किया है। इसके अलावा 'लहर' मुक्तकों का संग्रह है। 'झरना' उनकी छायावादी कविताओं की कृति है। 'कानन कुसुम' में उन्होंने अनुभूति और अभिव्यक्ति की नयी दिशाएँ खोजने के प्रयत्न किए हैं। सन् 1909 में 'प्रेम पथिक' का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले 'इन्दू' में प्रकाशित हुआ। 'आँसू' उनके मर्मस्पर्शी वियोगपरक उद्गारों की काव्य-कृति है। 'आँसू' उनका प्रसिद्ध वियोग काव्य है। उसके एक-एक छन्द में विरह की स्वाभाविक पीड़ा पूर्ण चित्रित है
जो धनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति-सी छायी। दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आयी।
प्रसादजी की प्रमुख कृतिया हैं - काव्य - कानन कुसुम्, महाराना का महत्व, झरना, आंसू, कामायनी, प्रेम पथिक कहानी – संग्रह - छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी, नाटक - स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, कामना और उपन्यास – कंकाल, तितली, इरावती।
प्रसाद जी की रचनाओं में जीवन का विशाल क्षेत्र समाहित हुआ है। प्रेम, सौन्दर्य, देश-प्रेम, रहस्यानुभूति, दर्शन, प्रकृति चित्रण और धर्म आदि विविध विषयों को अभिनव और आकर्षक भंगिमा के साथ आपने काव्यप्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। प्रसाद जी के काव्य साहित्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति की गरिमा और भव्यता बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत हुई है। आपके नाटकों के गीत तथा रचनाएँ भारतीय जीवन मूल्यों को बड़ी शालीनता से उपस्थित करती हैं। प्रसाद जी ने राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान को अपने साहित्य में सर्वत्र स्थान दिया है। आपकी अनेक रचनाएँ राष्ट्र प्रेम की उत्कृष्ट भावना जगाने वाली हैं। प्रसाद जी ने प्रकृति के विविध पक्षों को बड़ी सजीवता से चित्रित किया है। प्रकृति के सौम्य-सुन्दर और विकृत-भयानक, दोनों स्वरूप उनकी रचनाओं में प्राप्त होते हैं।
जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित-
मिला कहा वह सुख जिसका मैं स्वप्न देख कर जाग गया ।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया ।
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