Skip to main content

दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड लता मंगेशकर की जिंदगी पर एक नजर

30,000 से अधिक गीत गाने का रिकार्ड बनाने वाली सर्वोच्च अवार्ड भारत रत्न से सम्मानित भारत की सबसे लोकप्रिय, बेहतरीन और सम्मानित लता मंगेशकर भारत की सबसे अनमोल गायिका हैं। उनकी आवाज की दीवानी पूरी दुनिया है। इन्होने तक़रीबन 1000 से ज्यादा हिंदी फिल्मो के लिये गाने गाए है और तक़रीबन 36 देशी स्थानिक भाषाओ में भी गायन किया । 

लता मंगेशकर
लता मंगेशकर (फोटो साभार : http://celebritiesgallery.in)

भारत सरकार द्वारा भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च अवार्ड दादासाहेब फालके अवार्ड उन्हें 1989 में देकर सम्मानित किया गया था। एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी के बाद वह दूसरी गायिका है जिन्हें भारत के सर्वोच्च अवार्ड भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।

लता मंगेशकर की पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है । लता मंगेशकर का करियर 1942 में शुरू हुआ था और आज लगभग उन्हें 7 दशक पुरे हो चुके है। लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। 

लताजी का प्रारंभिक जीवन 

लताजी का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में एक मध्यवर्गीय मराठा परिवार में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर सबसे बड़ी बेटी के रूप में हुआ। जन्म के समय लता का नाम “हेमा” रखा गया था लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर लता रखा गया था। उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे। लताजी के भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना। हालाँकि लता का जन्म इंदौर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई। लता ने पाँच साल की उम्र से पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरु कर दिया था।

मात्र तेरह वर्ष की उम्र से संभाला परिवार 

पिता की मृत्यु के बाद भाई बहनो की जिम्मेदारी और पैसे की किल्लत के कारण लताजी ने संगीत और अभिनय को अपनी जीविका का साधन बनाया ।

1942 में मंगेशकर परिवार के साथ एक दुःखद घटना घटित हुई, जब दीनानाथ मंगेशकर को ह्रदय संबंधी बिमारी हुई और वे अपने विशाल युवा परिवार को बीच में छोड़ ही चल बसे थे। जब लता सिर्फ़ तेरह साल की थीं पिता की असामयिक मृत्यु के कारण घर की सारी जिम्मेदारी लता जी पर और गयी लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। लता बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं। बचपन में कुन्दन लाल सहगल की एक फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेगी। पहली बार लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाया। उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद भाई बहनो की जिम्मेदारी और पैसे की किल्लत के कारण लताजी ने संगीत और अभिनय को अपनी जीविका का साधन बनाया हालाँकि उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये ।

 स्वर कोकिला का गायिकी में कदम

लता ने अपना पहला गाना 1942 में मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ के लिये “नाचू या गड़े” गाया था। उनके पिता के दोस्त मास्टर विनायक ने लता को 1942 में मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला-गौर’ में एक छोटा सा किरदार भी दिया था जिसमे लता ने एक गाना भी गाया था। उनका पहला हिंदी गाना “माता एक सपूत की दुनियाँ बदल दे तु” 1943 में आई मराठी फिल्म का ही था। जो मराठी फिल्म “गजाभाऊ” का गाना था। बाद में 1945 में मास्टर विनायक कंपनी के साथ लता मुंबई आ गयी। इस समय भी लता उस्ताद अमानत अली खान से हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत सीखना शुरू किया था।

1950 में बहुत से म्यूजिक डायरेक्टर जैसे अनिल बिस्वास, शंकर जयकिशन, एस.डी. बर्मन, खय्याम इत्यादि द्वारा कंपोज़ किये गए गानों को लताजी ने गया। 1958 में फिल्म “मधुमती” के गीत “आजा रे परदेसी” गाने के लिये बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।

1948 में दुर्भाग्यवश विनायक की मृत्यु हो गयी थी अतः हिंदी फिल्म जगत में उनके शुरुवाती साल काफी संघर्ष से भरे हुए थे। लेकिन अंततः 1949 में आई फिल्म ‘महल’ में उन्होंने अपना हिट गाना “आयेगा आनेवाला” गाया। 1950 में बहुत से म्यूजिक डायरेक्टर जैसे अनिल बिस्वास, शंकर जयकिशन, एस.डी. बर्मन, खय्याम इत्यादि द्वारा कंपोज़ किये गए गानों को लताजी ने गया। 1958 में फिल्म “मधुमती” के गीत “आजा रे परदेसी” गाने के लिये बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।
लता मंगेशकर
फोटो साभार (सोशल मीडिया )
1960 का समय लता जी के लिये सफलताओ से भरा हुआ था, इस समय में उन्होंने “प्यार किया तो डरना क्या”, “अजीब दासता है ये” जैसे कई सुपरहिट गाने गाए।1960 के साल को सिंगर और म्यूजिक डायरेक्टर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और लता जी के संबंध के लिये भी जाना जाता था जिसके बाद लता जी ने तक़रीबन 35 साल के अपने लंबे करियर में 700 से भी ज्यादा गाने गाए।
 इसके बाद मंगेशकर की सफलता और आवाज़ का जादू 1970 और 1980 के दशक में भी चलता गया और इस समय उन्होंने कई धार्मिक गीत भी गाए थे। उन्होंने अपनी पहचान अपनी आवाज़ की बदौलत पुरे विश्व में बना रखी थी और आज के समय में भी लोग लता जी से उतना ही प्यार करते है जितना 70, 80 और 90 के दशक में करते थे। लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। वे हमेशा नंगे पाँव गाना गाती हैं। लता मंगेशकर ने दुनिया मे सबसे अधिक 30,000 से अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड  बनाया

लताजी द्वारा गाये गए गाने की एक कड़ी

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं  

तेरे बिना ज़िन्दगी से...

कहते है कभी टूटते है तो कभी बिखरते है विपत्तियों में इंसान  ज़्यादा निखरते है


ये भी पढ़े - सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक किशोर कुमार एक बेहतरीन शख्सियत

यदि आपके पास है कोई दिलचस्प कहानी या फिर कोई ऐसी कहानी जिसे दूसरों तक पहुंचना चाहिए, तो आप हमें लिख भेजें storysagar@gmail.com पर। साथ ही सकारात्मक, दिलचस्प और प्रेरणात्मक कहानियों के लिए हमसे फेसबुक और ट्विटरपर भी जुड़ें...

Comments

STORIES BY STORYSAGAR

भारत का दूसरा सबसे युवा शतरंज ग्रैंडमास्टर आर प्रज्ञाननंद

कहते है कोई भी लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं होता कुछ इसीतरह चेन्नई के आर प्रज्ञाननंद ने मात्र 12 साल दस महीने और 14 दिन की उम्र में चेस ग्रैंडमास्टर का खिताब अपने नाम करते हुए दुनिया के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बन गए। इससे पहले 1990 में यूकक्रेन के ग्रैंडमास्टर सर्गेई करजाकिन ने यह खिताब 12 साल और 7 महीने की उम्र में हासिल किया था। ग्रैंडमास्टर आर प्रज्ञाननंद  फोटो साभार (सोशल मीडिया ) प्रज्ञाननंद ने काफी अटैकिंग अंदाज में यह गेम खेला और शुरू बनी हुई बढ़त को पीछे नहीं जाने दिया। प्रज्ञाननंद से हार मानते हुए मोरोनी ने मैच बीच में ही सौंप दिया करजाकिन और प्रज्ञाननंद के अलावा, शतरंज के इतिहास में किसी ने भी 13 साल की उम्र से पहले प्रतिष्ठित ग्रैंडमास्टर खिताब हासिल नहीं किया है।  प्रज्ञाननंद ने ओर्टिसी में ग्रेडिन ओपन प्रतियोगिता में इटली के ग्रैंडमास्टर लुका मोरोनी जूनियर को 8वें राउंड में हराया। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रज्ञाननंद ने काफी अटैकिंग अंदाज में यह गेम खेला और शुरू बनी हुई बढ़त को पीछे नहीं जाने दिया। प्रज्ञाननंद से हार मानते हुए म

छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक प्रेम और आनन्द के कवि जयशंकर प्रसाद

आधुनिक हिन्दी साहित्य के युगप्रवर्तक लेखक जयशंकर प्रसाद को कविता करने की प्रेरणा अपने घर-मोहल्ले के विद्वानों की संगत से मिली। हिंदी साहित्य में प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास यानी रचना की सभी विधाओं में वह सिद्धहस्त थे। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। जयशंकर प्रसाद फोटो साभार (navbharattimes.indiatimes.com) 'चित्राधार' उनका पहला संग्रह है। उसका प्रथम संस्करण सन् 1918 में प्रकाशित हुआ। इसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली में कविता, कहानी, नाटक, निबन्धों का संकलन किया गया। वर्ष 1928 में इसका दूसरा संस्करण आया। हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक कवि-नाटककार-कहानीकार-उपन्यासकार तथा निबन्धकार जयशंकर प्रसाद है। 'लहर' मुक्तकों का संग्रह है। 'झरना' उनकी छायावादी कविताओं की कृति है। 'कानन कुसुम' में उन्होंने अनुभूति और अभिव्यक्ति की नयी दिशाएँ खोजने के प्रयत्न किए हैं। सन् 1909 में 'प्रेम पथिक' का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले 

पद्मश्री वंदना लूथरा : दो हजार रुपए से शुरू हुआ VLCC आज 121 शहरों में चला रहा है सेंटर

कहते है सपने से कुछ नहीं होता सफलता प्रयासों से हासिल होती है कुछ इसी तरह अपनी मेहनत और सफलता का डंका बजाने वाली वंदना लूथरा जिन्होंने मात्र दो हजार से की थी VLCC की शुरुआत आज न केवल एशिया की सबसे बड़ी वेलनेस कम्पनियों में शुमार हो गई है बल्कि भारत में वेलनेस सेक्टर के विस्तार में भी सराहनीय योगदान दिया है। वंदना लूथरा ( फोटो साभार: ट्विटर ) वंदना लूथरा ने अपनी बचत की छोटी सी रकम से वर्ष 1989 में दिल्ली में वीएलसीसी की शुरूआत की। तब यह भारत का पहला 'ट्रांस्फाॅर्मेशन सेंटर' था। 25 साल के काम-काज में वीएलसीसी के निरंतर प्रयासों से कंपनी के सेंटर 16 देशों के 121 शहरों में 300 से अधिक स्थानों पर मौजूद है। वीएलसीसी अपने स्तर से महिला सशक्तिकरण के लिए योगदान भी देती है। कंपनी का 'एंटरप्रेन्याॅरशिप फाॅर वुमन प्रोग्राम’ महिलाओं में उद्यम व प्रतिभा को बढ़ावा देता है और उन्हें पुरस्कृत भी करता है। आज देश में कंपनी के 10 में से सात विभागों की प्रमुख महिलाएं ही हैं। वीएलसीसी, एक ऐसी कंपनी जो लोगों को उनके शरीर और रुख के हिसाब से मेडीकेट करता है, संवारता है। वंदना लूथ

Popular posts from this blog

अगर तुम न होते सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक किशोर कुमार

हमे और जीने की चाहत न होती अगर तुम न होते, हिंदी फिल्म सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक किशोर कुमार ऐसी शख्सियत है, जिन्हे भुला पाना मुश्किल है बेहतरीन आवाज, सुरो की पकड़ और हर गीत में ऐसे डूबजाना मानो सुरो का सुनहरा इन्द्रधनुष । किशोर कुमार ने जिस गीत को गया उसमे जान डाल दी अपने नटखट और स्वर्णिम गायन से किशोर कुमार आज भी लोगो के दिलो पर राज करते है ।   किशोर कुमार (फोटो साभार : सोशल मीडिया )  किशोर कुमार ने सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के लिए 8 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते और उस श्रेणी में सबसे ज्यादा फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। उसी साल उन्हें मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।  किशोर कुमार ने अपने 40 वर्षो के गायन सफर में संगीत प्रेमी हजारो भारतीय लोगो का दिल जीता वे बेधड़क गायकी और मस्मौला स्वभाव से हमेसा अपनी याद दिलाते रहेंगे नटखट शरारती बच्चे जैसे स्वाभाव रखने वाले किशोर से जब कोई मिलता बहुधा वो अजीब तरह मिलते थे 1985 में प्रतीश नंदी द्वारा लिए गए साक्षात्कार में किशोर कुमार ने बताया की ऐसा करना उनका पागलपन नहीं वह जानबूझ कर

पद्मश्री वंदना लूथरा : दो हजार रुपए से शुरू हुआ VLCC आज 121 शहरों में चला रहा है सेंटर

कहते है सपने से कुछ नहीं होता सफलता प्रयासों से हासिल होती है कुछ इसी तरह अपनी मेहनत और सफलता का डंका बजाने वाली वंदना लूथरा जिन्होंने मात्र दो हजार से की थी VLCC की शुरुआत आज न केवल एशिया की सबसे बड़ी वेलनेस कम्पनियों में शुमार हो गई है बल्कि भारत में वेलनेस सेक्टर के विस्तार में भी सराहनीय योगदान दिया है। वंदना लूथरा ( फोटो साभार: ट्विटर ) वंदना लूथरा ने अपनी बचत की छोटी सी रकम से वर्ष 1989 में दिल्ली में वीएलसीसी की शुरूआत की। तब यह भारत का पहला 'ट्रांस्फाॅर्मेशन सेंटर' था। 25 साल के काम-काज में वीएलसीसी के निरंतर प्रयासों से कंपनी के सेंटर 16 देशों के 121 शहरों में 300 से अधिक स्थानों पर मौजूद है। वीएलसीसी अपने स्तर से महिला सशक्तिकरण के लिए योगदान भी देती है। कंपनी का 'एंटरप्रेन्याॅरशिप फाॅर वुमन प्रोग्राम’ महिलाओं में उद्यम व प्रतिभा को बढ़ावा देता है और उन्हें पुरस्कृत भी करता है। आज देश में कंपनी के 10 में से सात विभागों की प्रमुख महिलाएं ही हैं। वीएलसीसी, एक ऐसी कंपनी जो लोगों को उनके शरीर और रुख के हिसाब से मेडीकेट करता है, संवारता है। वंदना लूथ