हमे और जीने की चाहत न होती अगर तुम न होते, हिंदी फिल्म सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक किशोर कुमार ऐसी शख्सियत है, जिन्हे भुला पाना मुश्किल है बेहतरीन आवाज, सुरो की पकड़ और हर गीत में ऐसे डूबजाना मानो सुरो का सुनहरा इन्द्रधनुष । किशोर कुमार ने जिस गीत को गया उसमे जान डाल दी अपने नटखट और स्वर्णिम गायन से किशोर कुमार आज भी लोगो के दिलो पर राज करते है ।
किशोर कुमार (फोटो साभार : सोशल मीडिया )
किशोर कुमार ने सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के लिए 8 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते और उस श्रेणी में सबसे ज्यादा फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। उसी साल उन्हें मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
किशोर कुमार ने अपने 40 वर्षो के गायन सफर में संगीत प्रेमी हजारो भारतीय लोगो का दिल जीता वे बेधड़क गायकी और मस्मौला स्वभाव से हमेसा अपनी याद दिलाते रहेंगे नटखट शरारती बच्चे जैसे स्वाभाव रखने वाले किशोर से जब कोई मिलता बहुधा वो अजीब तरह मिलते थे 1985 में प्रतीश नंदी द्वारा लिए गए साक्षात्कार में किशोर कुमार ने बताया की ऐसा करना उनका पागलपन नहीं वह जानबूझ कर करते थे ।
प्रारंभिक जीवन -
किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में हुआ उनके पिता कुंजीलाल एक जाने माने वकील थे । किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली था। वे अपने भाई बहनों में दूसरे नम्बर पर थे। किशोर कुमार इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़े थे और उनकी आदत थी कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खुद भी खाना और दोस्तों को भी खिलाना।
कैंटीन का मालिक जब उनको अपने पाँच रुपया बारह आना चुकाने को कहता तो वे कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर गिलास और चम्मच बजा बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे ।
वह ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर कुमार पर जब कैंटीन वाले के पाँच रुपया बारह आना उधार हो गए और कैंटीन का मालिक जब उनको अपने पाँच रुपया बारह आना चुकाने को कहता तो वे कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर गिलास और चम्मच बजा बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में उन्होंने अपने एक गीत में इस पाँच रुपया बारह आना का बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया। किशोर कुमार अपनी मातृभूमि खंडवा से बहुत प्रेम करते थे मातृभूमि के प्रति ऐसा ज़ज़्बा बहुत कम लोगों में दिखाई देता है।
अभियन और संगीत से बुलंदी ने कदम चूमा -
किशोर कुमार ने भारतीय सिनेमा के उस स्वर्ण काल में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारे के रूप में स्थापित हो चुके थे। दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी, गुरुदत्त और रहमान जैसे कलाकारों के साथ ही पार्श्वगायन में मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का बोलबाला था। शुरू में किशोर कुमार को एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए।
किशोर कुमार 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म 'आंदोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई।
किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म शिकारी (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें पहली बार गाने का मौका मिला 1948 में बनी फ़िल्म जिद्दी में, जिसमें उन्होंने देव आनंद के लिए गाना गाया। किशोर कुमार के एल सहगल के ज़बर्दस्त प्रशंसक थे जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला। उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म 'आंदोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई। 1954 में उन्होंने बिमल राय की 'नौकरी' में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपनी ज़बर्दस्त अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया।
पड़ोसन फिल्म का एक द्रश्य
29 नवम्बर 1968 में आई फिल्म 'पड़ोसन' में किशोर कुमार ने गायकी के साथ साथ अपनी अदाकारी का भी हुनर दुनिया को दिखाया पडोसन फिल्म को सिने प्रेमियों ने बहुत पसंद किया और किशोर कुमार के अभिनय को भी सराहा उन्हें लोग 'किशोर दा' कह कर पुकारते थे।
किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म "फंटूस" में दुखी मन मेरे गीत अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एस डी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया। आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'फंटूश', 'नौ दो ग्यारह', 'पेइंग गेस्ट', 'गाईड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेमपुजारी', 'तेरे मेरे सपने' जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया।
किशोर कुमार के जीवन से जुडी खास बाते -
एक बार किशोर कुमार के घर इंटीरियर डेकोरेटर पधारा वो सज्जन तपती धूप में थ्री पीस सूट में आए और आते ही अमेरिकन लहजे में घर की आंतरिक साज सज्जा के बारे में बोलने लगे आधे घंटे उन्हें सुनने के बाद किशोर कुमार बोले ,
मुझे अपने कमरे में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस चारो तरफ कुछ फीट गहरा पानी हो और सोफे की जगह संतुलित नावें , जिसे हम चप्पू से चलाकर इधर उधर ले जा सके चाय रखने के लिए टेबल को धीरे धीरे नीचे किया जा सके ताकि हम मजे से वहां कप उठा चाय की चुस्कियों का मजा ले जा सके ।
इंटीरियर डेकोरेटर घबरा गया लेकिन किशोर कुमार बोलते रहे ,
... आप तो जानते है मै प्रकति प्रेमी हूँ इसीलिए अपने कमरे की दीवार की सजावट के लिए मै चाहता हूँ की उन पर पेंटिंग के बजाए लटकते हुए जीवित कौए हो और पंखे की जगह हवा छोड़ते बन्दर ।
यह सुनते ही इंटीरियर डेकोरेटर भयभीत हो गया और वहां से भाग खड़ा हुआ । किशोर से जब कोई मिलता बहुधा वो अजीब तरह मिलते थे 1985 में प्रतीश नंदी द्वारा लिए गए साक्षात्कार में किशोर कुमार ने बताया की ऐसा करना उनका पागलपन नहीं वह जानबूझ कर करते थे ।
मध्यप्रदेश सरकार ने किशोर कुमार के हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए एक नया पुरस्कार चालु कर दिया था। जिसका नाम था 'किशोर कुमार पुरस्कार' । वे एक अच्छे अभिनेता के रूप में भी जाने जाते हैं। हिन्दी फ़िल्म उद्योग में उन्होंने बंगाली, हिंदी, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया और उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं में गाया था। किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय और 18 फ़िल्मों का निर्देशन किया। फ़िल्म 'पड़ोसन' में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे।
13 अक्टूबर, 1987 में किशोर कुमार ने इस दुनिया से विदा ले ली लेकिन अपने मधुर संगीत की धुन से सदैव हम सबके दिलो में राज करते रहेंगे।
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