सुरैया बॉलीवुड की वो बेहतरीन गायिका -अदाकारा है जिन्होंने अपने जादुई गायन से लगभग चार दशक तक सिने प्रेमियों को दीवाना बनाए रखा ।
सुरैया (फाइल फोटो)
सुरैया की गायकी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी भाव भंगिमाएं सुरैया की गायकी में अदाएँ भी थी और भाव भी आज भी उनकी गायकी के कद्रदानों की कमी नहीं है
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी सुरैया की महानता के बारे में कहा था कि उन्होंने मिर्जा गालिब की शायरी को आवाज देकर उनकी आत्मा को अमर बना दिया।
गायकी में नफासत की मलिका सुरैया जमाल शेख ने अपने हुनर से हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नई इबारत लिखी। 1947 में देश की आजादी के बाद नूरजहां और खुर्शीद बानो ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली, लेकिन सुरैया यहीं रहीं। सुरैया को हिंदुस्तान से बेइंतहा प्यार था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी सुरैया की महानता के बारे में कहा था कि उन्होंने मिर्जा गालिब की शायरी को आवाज देकर उनकी आत्मा को अमर बना दिया।
सुरैया का जन्म
मशहूर खलनायक जहूर सुरैया के चाचा थे और उनकी वजह से 1937 में उन्हें फिल्म उसने क्या सोचा में पहली बार बाल कलाकार के रूप में भूमिका मिली।
15 जून 1929 को गुजरावाला में जन्मी सुरैया अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं। नाजों से पली सुरैया ने हालांकि संगीत की शिक्षा नहीं ली थी लेकिन आगे चलकर उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ एक अच्छी गायिका के रूप में भी बनी। सुरैया ने अपने अभिनय और गायकी से हर कदम पर खुद को साबित किया है। सुरैया के फिल्मी कैरियर की शुरुआत बड़े रोचक तरीके से हुई। गुजरे जमाने के मशहूर खलनायक जहूर सुरैया के चाचा थे और उनकी वजह से 1937 में उन्हें फिल्म उसने क्या सोचा में पहली बार बाल कलाकार के रूप में भूमिका मिली।
नौशाद ने पहचाना सुरैया की प्रतिभा
1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान वह मोहन स्टूडियो में फिल्म ताजमहल की शूटिंग देखने गईं तो डायरेक्टर नानूभाई वकील की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने सुरैया को एक ही नजर में मुमताज महल के बचपन के रोल के लिए चुन लिया। आकाशवाणी के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट नौशाद ने जब सुरैया को गाते सुना तब वह उनके गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। नौशाद के संगीत निर्देशन मे पहली बार कारदार साहब की फिल्म शारदा में सुरैया को गाने का मौका मिला।
मुरीद हो गए के.एल. सहगल
सुरैया को साल 1946 मे महबूब खान की अनमोल घड़ी में भी काम करने का मौका मिला। हांलाकि सुरैया इस फिल्म मे सहअभिनेत्री थी लेकिन फिल्म के एक गाने सोचा था क्या क्या हो गया से वह बतौर पार्श्वगायिका श्रोताओं के बीच अपनी पहचान बनाने में काफी हद तक सफल रही। इस बीच निर्माता जयंत देसाई की फिल्म चन्द्रगुप्ता के एक गाने के रिहर्सल के दौरान सुरैया को देखकर के. एल. सहगल काफी प्रभावित हुए और उन्होंने जयंत देसाई से सुरैया को फिल्म तदबीर में काम देने की सिफारिश की। साल 1945 मे प्रदर्शित फिल्म तदबीर में के. एल. सहगल के साथ काम करने के बाद धीरे-धीरे उनकी पहचान फिल्म इंडस्ट्री में बनती गई।
भावुक हुए जवाहर लाल नेहरू
फिल्म मिर्जा गालिब को राष्ट्रपति के गोल्ड मेडल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। फिल्म को देख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी भावुक हो गये थे।
सुरैया के सिने कैरियर मे साल 1949-50 अभूतपूर्व परिवर्तन आया। वह अपनी प्रतिद्वंदी अभिनेत्री नरगिस और कामिनी कौशल से भी आगे निकल गई।फिल्म मिर्जा गालिब को राष्ट्रपति के गोल्ड मेडल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। फिल्म को देख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी भावुक हो गये थे। हिन्दी फ़िल्मों में 40 से 50 का दशक सुरैया के नाम कहा जा सकता है। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उनकी एक झलक पाने के लिए उनके प्रशंसक मुंबई में उनके घर के सामने घंटों खड़े रहते थे।
31 जनवरी 2004 को सुरैया दुनिया को अलविदा कह गईं। सुरैया आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका अभिनय, उनका संगीत हमेशा हम सबको उनकी याद दिलाता रहेगा।
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