तुम जो चाहते हो अगर वो हो जाए तो तुम्हे ख़ुशी मिलेगी वैसे ही अगर तुम खुश रहने लगो तो वह होने लगेगा जो तुम चाहते हो । कुछ ऐसी सोच देखने को मिलती है अगर मधुबाला के जीवन पन्नो को पलट कर देखे। सिनेमा की 'सौन्दर्य देवी' कही जाने वाली मधुबाला बेहद खूबसूरत होने के साथ ही बहुत सुन्दर दिल भी रखती थी । मधुबाला हर परिस्थिति में खुद को ढालने का हुनर रखती थी ।
मधुबाला (फोटो साभार :सोशल मीडिया )
बालीवुड में मधुबाला प्रवेश 'बेबी मुमताज़' के नाम से हुआ। उनके अभिनय में एक आदर्श 'भारतीय नारी' को देखा जा सकता है। मात्र 36 वर्ष की अप्ल आयु में दुनिया से विदा लेने वाली अभिनेत्री मधुबाला के अभिनय काल को हिन्दी फ़िल्मों के समीक्षक 'स्वर्ण युग' कहते हैं ।
हृदय रोग से पीड़ित थी मधुबाला लेकिन उन्होंने अपने अभिनय में कभी अपनी बीमारी को आने नहीं दिया । अपने किरदार को बड़ी ही सुंदरता और नजाकत से करती थी उनके अभिनय, प्रतिभा, व्यक्तित्व और खूबसूरती को देख कर यही कहा जाता है कि वह भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे महान अभिनेत्री है।
मधुबाला का जन्म-
एक भविष्यवक्ता ने मधुबाल के बचपन उनके माता-पिता से ये कहा था कि मधुबाला अत्यधिक ख्याति अर्जित करेगी परन्तु उसका जीवन दुखःमय होगा।
दिल्ली के एक पश्तून मुस्लिम परिवार मे 14 फ़रवरी 1933 में मधुबाल का जन्म हुआ था। उनके माता-पिता के कुल 11 बच्चे थे। मधुबाला अपने माता-पिता की 5 वीं सन्तान थी। मधुबाला का बचपन का नाम 'मुमताज़ बेग़म जहाँ देहलवी' था। ऐसा कहा जाता है कि एक भविष्यवक्ता ने उनके माता-पिता से ये कहा था कि मुमताज़ अत्यधिक ख्याति तथा सम्पत्ति अर्जित करेगी परन्तु उसका जीवन दुखःमय होगा। उनके पिता अयातुल्लाह खान ये भविष्यवाणी सुन कर दिल्ली से मुम्बई एक बेहतर जीवन की तलाश मे आ गये। मुम्बई मे उन्होने बेहतर जीवन के लिए काफ़ी संघर्ष किया। मधुबाल बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी 12 वर्ष की आयु मे उन्हे वाहन चलाना आता था ।
बॉलीवुड में हुनर से जमा लिया सिक्का -
बालीवुड में उनका प्रवेश 'बेबी मुमताज़' के नाम से हुआ। उनकी पहली फ़िल्म बसन्त 1942 में आई । देविका रानी बसन्त में उनके अभिनय से बहुत प्रभावित हुयीं, तथा उनका नाम मुमताज़ से बदल कर ' मधुबाला' रख दिया। उन्हे बालीवुड में अभिनय के साथ-साथ अन्य तरह के प्रशिक्षण भी दिये गये। उन्हें मुख्य भूमिका निभाने का पहला मौका केदार शर्मा ने अपनी फ़िल्म नील कमल (1947 ) में दिया। इस फ़िल्म मे उन्होने राज कपूर के साथ अभिनय किया। इस फ़िल्म मे उनके अभिनय के बाद उन्हे 'सिनेमा की सौन्दर्य देवी' कहा जाने लगा।2 साल बाद बाम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म महल में उन्होने अभिनय किया। महल फ़िल्म का गाना 'आयेगा आनेवाला' लोगों ने बहुत पसन्द किया। इस फ़िल्म का यह गाना मधुबाला के कैरियर में, बहुत सहायक सिद्ध हुआ। महल की सफलता के बाद उन्होने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
150 के दशक में उनकी कुछ फ़िल्मे असफल भी हुयी। जब उनकी फ़िल्मे असफल हो रही थी तो आलोचक ये कहने लगे की मधुबाला में प्रतिभा नही है तथा उनकी कुछ फ़िल्में उनकी सुन्दरता की वज़ह से हिट हुयीं, ना कि उनके अभिनय से।
उस समय के स्थापित पुरूष कलाकारों के साथ उनकी एक के बाद एक फ़िल्म आती गयीं तथा सफल होती गयीं। उन्होंने अशोक कुमार, रहमान, दिलीप कुमार, देवानन्द आदि सभी के साथ काम किया। 150 के दशक में उनकी कुछ फ़िल्मे असफल भी हुयी। जब उनकी फ़िल्मे असफल हो रही थी तो आलोचक ये कहने लगे की मधुबाला में प्रतिभा नही है तथा उनकी कुछ फ़िल्में उनकी सुन्दरता की वज़ह से हिट हुयीं, ना कि उनके अभिनय से। लेकिन ऐसा नहीं था। उनकी फ़िल्मे फ़्लाप होने का कारण था- सही फ़िल्मों का चुनाव न कर पाना। मधुबाला के पिता ही फ़िल्मों का चुनाव करते थे। परिवार बड़ा और पिता का व्यवसाय न होने के कारण मधुबाला की आय पर ही परिवार टिका था। परिवार के पालन-पोषण के लिये इनके पिता किसी भी तरह के फ़िल्म का चुनाव कर लेते थे और यही उनकी कुछ फ़िल्मे असफल होने का कारण बना। इन सब के बावजूद वह कभी निराश नही हुयीं।
हर मुश्किल का डटकर किया सामना -
अनारकली के किरदार में मधुबाला
मुगल-ए-आज़म में उनका अभिनय विशेष उल्लेखनीय है। इस फ़िल्म मे सिर्फ़ उनका अभिनय ही नही बल्कि 'कला के प्रति समर्पण' भी देखने को मिलता है। इसमें 'अनारकली' की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनका लगातार गिरता हुआ स्वास्थ्य उन्हें अभिनय करने से रोक रहा था लेकिन वो नहीं रूकीं। उन्होने इस फ़िल्म को पूरा करने का दृढ निश्चय कर लिया था। फ़िल्म के निर्देशक के. आशिफ़ फ़िल्म मे वास्तविकता लाना चाहते थे। वे मधुबाला की बीमारी से भी अन्जान थे। उन्होने शूटिंग के लिये असली जंज़ीरों का प्रयोग किया। मधुबाला से स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भारी जंज़ीरो के साथ अभिनय किया। मधुबाला ने लगभग 70 फ़िल्मो में बेहतरीन काम किया।
मुगले-ए-आज़म फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड के लिये नामित किया गया था। हालांकि यह पुरस्कार उन्हे नहीं मिल पाया। कुछ लोग सन्देह व्यक्त करते है की मधुबाला को यह पुरस्कार इसलिये नही मिल पाया क्योंकि वह घूस देने के लिये तैयार नहीं थी ।
मधुबाला दिलीप कुमार से प्रेम करती थी किन्तु किन्ही कारणवश उनका विवाह नहीं हुआ और 1960 में उन्होंने किशोर कुमार से विवाह कर लिया परन्तु किशोर कुमार के माता-पिता ने कभी भी मधुबाला को स्वीकार नही किया। इन्ही सब दिक्क्तों के चलते मधुबाला डिप्रेशन में रहने लगी। मधुबाला हृदय रोग से पीड़ित थीं जिसका पता 1950 मे नियमित होने वाले स्वास्थ्य परीक्षण मे चला जिन्दगी के अन्तिम 9 साल उन्हे बिस्तर पर ही बिताने पड़े। 23 फ़रवरी 1969 को उनका स्वर्गवास हो गया।
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